उत्तर प्रदेश | जनपद बलिया | में एक ऐसा थाना भी है. जहां स्वतंत्र रूप से बाहर भीतर हर जगह मुर्गे विचरण करते हैं. जी हां देसी मुर्गे, मजाल है क्या की कोई इन देसी मुर्गों को हाथ लगा दे. थाने के अंदर स्थित मजार पर हर कोई इन देसी मुर्गों को चढ़ाकर छोड़ देता है. लेकिन आज तक किसी ने इन मुर्गों को मारा नही. यहीं नहीं थानेदार कोई भी हो लेकिन चलती है बाबा की.
वीडियो में आप स्वयं देख सकते हैं. कि किस प्रकार से निःसंकोच यह मुर्गे थाने के बाहर और भीतर भ्रमण करते नजर आ रहे हैं. हम बात कर रहे हैं बलिया जनपद के सिकंदरपुर थाने की यहां के ये मुर्गे कोई आम नहीं बाबा के मजार पर चढ़ाकर छोड़े गए देसी मुर्गे हैं. प्राचीन समय से थाने पर कार्यरत होमगार्ड अजय कुमार चौधरी बताते हैं. की यह देसी मुर्गे शहीद बाबा के नाम पर छोड़े जाते हैं. जिनको कोई मारने की हिम्मत नहीं करता है. जब भी कोई नए थानाध्यक्ष आते हैं. तो शहीद बाबा के नाम पर एक देसी मुर्गे जरुर छोड़ते हैं.
कैसे हुआ शहीद बाबा मजार का निर्माण
उत्तर प्रदेश बलिया जनपद के सिकंदरपुर थाने का निर्माण जब हो रहा था. तो बार-बार हर तरफ से तैयार थाना एक तरफ से गिर जा रहा था. अंत में मुस्लिम समुदाय के एक जानकार व्यक्ति ने इस मजार के संदर्भ में जानकारी दी. तब जाकर पहले इस मजार को बनाया गया, चादर चढ़ाया गया, मुर्गे छोड़े गए. उसके बाद थाने का निर्माण हुआ. जहां आज भी देसी मुर्गों का बोलबाला दिखाई देता है.
एसआई मुर्गे को मार कर खाने का किए थे प्रयास, हों गई थी तबीयत खराब
बहुत पहले एक एसआई ने यहां के एक मुर्गे को मारकर खा लिए थे. उसके बाद उनका तबीयत खराब हो गया. अंततः उनको एक मुर्गे के बजाय दो मुर्गे बाबा के मजार पर चढ़ाकर छोड़ना पड़ा. तब जाकर उनकी जान बची. तब से आज तक किसी ने इन देसी मुर्गों को मारने की हिम्मत नहीं की. प्रतिदिन थानाध्यक्ष भी बाबा के मजार पर मत्था टेकते हैं.
बड़े अधिकारी के आने से पहले मुर्गे देते हैं संकेत
थाने पर औचक निरीक्षण में किसी बड़े अधिकारी के आने से पहले मुर्गे संकेत दे देते हैं. पहरेदार कोई भी हो उसको अनुभव हो जाता है. की कोई न कोई बड़ा अधिकारी निरीक्षण पर आ रहे है.
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