●एडॉप्शन वीक में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा यूनीसेफ के सहयोग से किया वेबनॉर
बलिया | The adopted child should get all the rights | महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 16 से 22 अक्टूबर के मध्य एडॉप्शन वीक मनाया जा रहा है। इसी क्रम में बुधवार को यूनिसेफ के सहयोग से एक वेबनॉर का आयोजन किया गया। जिसमें महिला एवं बाल विकास विभाग, यूनिसेफ, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस विभाग सहित विभाग के मंडलीय अधिकारी, विभिन्न जिलों के जिला प्रोबेशन अधिकारी, बाल कल्याण समिति, मीडियाकर्मी, वन स्टॉप सेंटर, बाल देखरेख संस्थाओं, चाइल्ड हेल्पलाइन और महिला सशक्तीकरण केंद्र के सदस्यों ने भाग लिया।
इस अवसर पर, विभाग के निदेशक संदीप कौर ने बताया कि विभाग 16 अक्टूबर से 22 अक्टूबर तक मध्य एडॉप्शन वीक करेगा। इस दौरान लोगों को बच्चों को गोद लेने की कानूनी प्रक्रियाओं की जानकारी देकर उन्हें जागरूक करने का काम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें कई बार रेलवे और बस स्टेशन, झाड़ियों में नवजात बच्चे मिलते हैं। जिन्हें देर हो जाने पर बचाना मुश्किल हो जाता है। जो लोग बच्चों को नहीं पालना चाहते हैं, वह उन्हें अस्पताल, शिशु गृह या फिर किसी सुरक्षित संस्था के सुपुर्द कर दें अथवा 1098 निशुल्क नंबर पर चाइल्ड हेल्पलाइन को सूचित करें।
इसके लिए शिशु गृहों और अस्पतालों में शिशु पालना होनी चाहिए, जहां लोग अपने बच्चों को छोड़ सकते हैं, ताकि बच्चा सुरक्षित हाथों में आए। महिला एवं बाल विकास विभाग के उप निदेशक पुनीत मिश्रा ने बताया कि बच्चों को गोद लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है।। कोई भी परिवार कहीं से भी cara.wcd.gov.in वेबसाइट पर आवेदन कर सकते हैं।
यूनिसेफ इंडिया के विशेषज्ञ ने कहा…(The adopted child should get all the rights)
बाल अधिकारों के विशेषज्ञ और यूनिसेफ इंडिया के विशेषज्ञ प्रभात कुमार ने कहा कि बच्चे को गोद लेने वाले परिवार और हम सभी की जिम्मेदारी है कि बच्चे को सभी अधिकार मिले, एक पूरी तरह से पारिवारिक वातावरण मिले और बच्चे को भेदभाव से बचाया जाए। उनका कहना था कि गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने की जरूरत है, साथ ही इससे जुड़े सभी विभागों को शीघ्रता से पारदर्शिता से काम करना चाहिए।
बाल संरक्षण विषय विशेषज्ञ करूणा नारंग ने कहा कि बेटे की चाह में कई परिवारों में बच्चों की संख्या बढ़ती जाती है। ऐसे में महिलाओं को शिक्षित करना चाहिए कि बच्चों को अकेला छोड़ देने की बजाय जिला बाल संरक्षण इकाई या बाल कल्याण समिति को सौंप दें, ताकि वे किसी परिवार को गोद ले सकें। परिचर्चा के अंत में एक प्रश्नोत्तर सत्र हुआ, जिसमें विभिन्न जिलों से आए लोगों ने अपने प्रश्न पूछे, और विशेषज्ञों ने उनके प्रश्नों का उत्तर दिया। कार्यक्रम को विभाग के राज्य परामर्शदाता नीरज मिश्र ने संचालित किया।
यह हैं गोद लेने के नियम …(The adopted child should get all the rights)
- यदि कोई एकल महिला अपने बच्चे को पालना चाहती है, तो वह किसी को भी पाल सकती है।
- यदि कोई एकल व्यक्ति एक बच्चे को गोद लेना चाहता है, तो उसे सिर्फ बेटा दिया जाता है, नहीं बेटी
- यदि परिवार में दो बच्चे होने पर भी कोई बच्चा गोद लेना चाहे तो ऐसा नहीं होगा।
यह हैं जरूरी दस्तावेज …
- गोद लेने वाले दंपति का आधार कार्ड, घर का प्रमाण
- उस बच्चे की सहमति आवश्यक है जो खुद का बच्चा है और पांच साल से अधिक है।
- गोद लेने वाला व्यक्ति (यदि शादीशुदा है) शादी का प्रमाणपत्र
- गोद लेने वाले तलाकशुदा व्यक्ति का प्रमाण-पत्र
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